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बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2634
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान

10

 

मानव विकास

(Human Development)

प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।

अथवा
मानव विकास से आप क्या समझते हैं? इसके विषय क्षेत्र एवं उपयोगिता को समझाइए।
अथवा
मानव विकास का अर्थ एवं परिभाषा देते हुये उसके महत्व का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

मानव विकास
(Human Development)

मानव जीवन विभिन्न परिस्थितियों से निकलकर उनके साथ प्रतिक्रिया कर, धीरे-धीरे एक सुव्यवस्थित व्यक्तित्व अर्जित करता है। नन्हा शिशु विकास व वृद्धि को प्राप्त हो एक सन्तुलित सुव्यवस्थित वयस्क के रूप में समाज के समक्ष आता है। वृद्धि एवं विकास के इस निरन्तर क्रम की परिणति वृद्धावस्था, तत्पश्चात् मृत्यु में होती है। मानव का विकास कभी भी स्थिर नहीं रहता। . गतिशीलता ही उसका आधार है। एक क्षेत्र की क्रिया, प्रतिक्रिया स्वरूप दूसरे क्षेत्र को भी प्रभावित करती है। यही प्रतिक्रियाऐं मानव विकास में निरन्तरता लाती हैं।

प्रत्येक शिशु अपने व्यवहार में दूसरे शिशु से भिन्न होता है। विकास क्रम में वयस्क मानव भी दूसरे मानव से भिन्न होता है। यह भिन्नताऐं आनुवंशिकता के कारण भी हो सकती हैं, तथा कुछ अन्य जैवकीय कारण भी हो सकते हैं। बालक के जीवन की परिस्थिति व परिवेश के भी अन्य कारण हो सकते हैं। वैयक्तिक अनुभव तथा पारस्परिक सम्बन्धों का महत्व नकारा नहीं जाप सकता।

विकास का अर्थ
(Meaning of Development)

विकासात्मक मनोवैज्ञानिक व्यवहार (सामान्य अथवा असामान्य) के उद्गम, परिवर्तन तथा रूपान्तरण को समझने का प्रयास करता है। किस कारण से यह व्यवहार होता है, उन कारकों को समझने का यत्न करता है।

व्यवहार के सभी परिवर्तन विकास नहीं कहलाते। कुछ व्यवहार जैसे भूख लगने के कारण रोना तथा मचलना, भूख शान्त होने के उपरान्त सन्तुष्ट होकर बदल जाते हैं, यह व्यवहार अस्थायी व क्षणिक होते हैं।

विकास शब्द व्यवहार तथा विशेषकों के उस परिवर्तन को व्यक्त करता है जिनका उद्भव सुनिश्चित प्रणाली से होता है तथा जो कुछ उचित समय तक रहते हैं। विकास के यह परिवर्तन प्रतिक्रियाओं के नये सुधरे हुये रूप में व्यक्त होते हैं जिनके कारण व्यवहार अधिक समायोजित, अनुकूल, स्वस्थ, जटिल, स्थायी, कुशल तथा अधिक परिपक्व होता है। उदाहरण के लिये घुटने चलने से पैदल चलना, गर्गलाने से स्पष्ट बोलना, परोक्ष विचारधारा अथवा सोचने से अपरोक्ष विचार तथा सोचना। आत्मकेन्द्रित, अपरिपक्व विचारधारा का दूसरों के प्रति अनुचिंतन में विकसित होना, यह परिवर्तित व्यवहार ही विकास है।

मानव विकास का अध्ययन करने के लिये हमें मानव की प्रथम इकाई पर आना पड़ेगा, वह है शिशु। शैशवस्था से लेकर व्यस्क अवस्था तक का अध्ययन मानव विकास के अन्तर्गत आयेगा। यह विकास सामाजिक तथा संवेगात्मक विकास से प्रभावित होगा। बाल्यावस्था के प्रथम छः वर्ष बाल विकास के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। इन वर्षों में बालक के स्वभाव, व्यक्तित्व, कुशलता, समाजीकरण व बौद्धिक विकास के बीज पड़ जाते हैं, जो समयानुसार अंकुरित होकर वयस्क जीवन में आने तक परिपक्व हो जाते हैं। बाल मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि सम्पूर्ण जीवन में यह प्रथम छः वर्ष, जो जन्म से आरम्भ होते हैं, व्यक्तित्व विकास के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। बालक के इन्हीं पाँच छः वर्षों के अध्ययन के आधार पर ही मानव विकास व बाल विकास के उद्देश्य प्राप्त किये जा सकते हैं। बालक राष्ट्र की धरोहर है, जिसका विकास, परिवार, समाज, राष्ट्र व विश्व के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है। प्रत्येक परिवार का विश्वोन्नति में यही समग्र योगदान है।

मानव विकास की परिभाषा (Definition of Human Development)- बाल विकास व मानव विकास एक दूसरे पर निर्भर करते हैं इसी धारणा के आधार पर निम्नलिखित परिभाषायें दी गई हैं।-

हरलॉक ( Hurlock) (1974) के अनुसार "मानव विकास का आधार बाल विकास में मुख्यतः बालक के रूप, व्यवहार, रुचियों और लक्ष्यों में होने वाले उन विशिष्ट परिवर्तनों की खोज पर बल दिया जाता है, जो उसके एक विकासात्मक अवस्था से दूसरी विकासात्मक अवस्था में पदार्पण करते समय होते हैं। बाल विकास में साथ ही साथ यह खोज करने का भी प्रयास किया जाता है कि यह परिवर्तन कब होते हैं इसके क्या कारण है और यह वैयक्तिक है या सर्वाभौमिक। ”

हरलॉक ने विकास की परिभाषा देते हुये कहा है कि विकास से तात्पर्य है "वे व्यवस्थित तथा सम्बन्धित परिवर्तन जो परिपक्वता की प्राप्ति में सहायक हो। "

मसन, कौनगर व कगान (Mussen, Conger & Kagan) के अनुसार आयु प्रवृत्ति के आधार पर चिन्तन, समस्या निदान, रचनात्मकता, नैतिक तर्क, व्यवहार, विचार धारा, आदि पर किये गये अध्ययन महत्वपूर्ण हैं। इन सब परिवर्तनों के मूल में जो प्रक्रिया व प्रणालीतन्त्र है वहीं अध्ययन का विषय है।

मानव विकास का विषय-क्षेत्र (Scope of Human Development)

मानव विकास के अध्ययन के विभिन्न निम्नलिखित विषय क्षेत्र हैं-

1. मानव की वैयक्तिकता को समझने की क्षमता, बालक के विशेषकों की अनुपमेयता तथा जीवन के प्रति दृष्टिकोण, इन सबका विश्लेषण करना।

2. बाल विकास में विभिन्न सिद्धान्तों तथा नियमों को समझना, जिससे कि विकास को आनुवांशिकता, व्यक्ति तथा वातावरण के प्रभाव के सन्दर्भ में भलि भाँति समझ सकें।

3. इस अध्ययन से व्यक्तिगत व्यवहार की रूप रेखा को समुचित रूप से प्रेक्षण करना तथा अर्थ निरूपण करना।

4. बाल अध्ययन के विभिन्न विचारधाराओं की प्रभावशीलता का मूल्यांकन तथा विभेदन करने की क्षमता अर्जित करना।

5. अधिगम तथा समायोजन प्रक्रिया में बालकों को निर्देशित करने के लिये समुचित विचार धाराओं तथा मूल सिद्धान्तों का नियमन करना।

6. बाल विकास के विस्तृत साहित्य में से विभिन्न स्रोत वस्तुओं का चयन करना तथा उनका उपयोग करना।

7. मानव विकास के भविष्य में सम्भावित विकास के बारे में पूर्वकथन करना।

8. मानव विकास का अध्ययन बालक व वयस्क के आपसी सम्बन्धों को सही ढंग से बनाने में सहायक होता है।

9. मानव की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उसके समायवर्ति मानसिक अवस्था के आधार पर प्रतिक्रिया समझना आवश्यकता पूर्ति अवश्य होनी चाहिये व मूलभूत आवश्यकताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) बिना किसी शर्त के बालक को स्वीकृति व स्नेह प्राप्त करने की आवश्यकता की पूर्ति।

(ii) सुरक्षा की आवश्यकता।

(iii) किसी समूह का अंग होना, किसी का अपना होना, तदात्मीकरण (Identification) तथा स्वीकृति की अपेक्षा।

(iv) दूसरों द्वारा पहचाने जाने की आवश्यकता, अनुमोदन प्राप्त करना, महत्वपूर्ण अनुभव करना, तथा जैसा वह है, कार्य करता है, उसी रूप में स्वीकृत होना।

(v) स्वतन्त्र होने की भावना, उत्तरदायित्व निभाना तथा सौंपा जाना तथा निर्णय व चुनाव करने की आवश्यकता आदि।

जब यह तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति में बाधा आती है, अथवा वंचना होती है, तब बालक के विकास में बाधा आती है।

मानव विकास का महत्व
(Importance of Human Development) -

बालक अथवा मानव विकास तथा व्यक्तित्व को सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य में समझना आवश्यक है। कोई भी एक कारक तत्व अथवा पहलू एकीकृत रूप में नहीं समझा जा सकता। सम्पूर्ण से एकल का सम्बन्ध स्थापित करना आवश्यक है व इसी सन्दर्भ में यह अध्ययन किया जाना चाहिये।

सभी विकास तथा वृद्धि आपस में सहसम्बन्धित हैं। चाहे वह जीव किसी वातावरण से क्रियान्वित हो, संज्ञानात्मक कारकों का संवेगात्मक विकास पर प्रभाव हो, कारण दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, तथा चाहे वह बालक की सामाजिक कारकों का बालक को उत्प्रेरित करने का कारक हो, सभी का प्रभाव एक दूसरे पर निर्भर है। इन सह सम्बन्धों का अत्यन्त गहन महत्व है तथा इनका अध्ययन मानव विकास को समझने में सहायक है।

मानव विकास अध्ययन के उद्देश्य
(Aims and Objectives of Study of Human Development)

मानव विकास शिशु अथवा बाल विकास से आरम्भ होता है। यथार्थ में तो गर्भाधान से ही विकास प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है, पर परोक्ष रूप में जन्म के उपरान्त का विकास ही दृष्टिगत है। इस कारण बालक की वृद्धि एवं विकास के प्रति सभी माता-पिता सचेत रहते हैं। एक सामान्य स्वस्थ बालक राष्ट्र के लिये सम्पत्ति है। मानव विकास इसी दृष्टिकोण से अध्य- यन करता है व एक सर्वरूपेण समृद्ध विकसित बालक का निर्माण करने में सहायक है तथा समुचित समायोजन व सन्तुलित व्यक्तित्व जिसकी विशेषताएँ हैं।

मानव विकास मनोविज्ञान की शाखा है तथा इस प्रकार एक विज्ञान है। यह बालक की क्रियाओं का अध्ययन करती है। इस ज्ञान के आधार पर विभिन्न नियामक निर्धारित करती है, जिसके आधार पर निम्नलिखित उद्देश्य पूर्ण होते हैं-

1. पूर्वकथन या भविष्यवाणी (Prediction)

2. मार्ग निर्देशन (Guidance)

3. नियन्त्रण ( Control)

पूर्वकथन या भविष्यवाणी (Prediction) - मानव विकास में, बालक की जन्मजात क्षमता का अध्ययन किया जाता है। जिसके आधार पर अर्जित क्षमताओं के बारे में पूर्वकथन दिया जा सकता है। बालक का व्यक्तित्व, शारीरिक कारक, मानसिक तत्व, संवेगात्मक सन्तुलन, सामाजीकरण, मूल्य आदि के विशेष आधार स्थापित किये जा सकते हैं तथा इन सब कारकों का मानव विकास पर क्या प्रभाव पड़ेगा, बालक किस प्रकार के संभावित व्यक्तित्व का हो सकता ऐसा पूर्व कथन दिया जा सकता है। इन सबका सम्मिलित प्रभाव, विशिष्ट परिस्थितियों में बालक की प्रतिक्रिया पर पड़ेगा। वैज्ञानिक अध्ययन होने के कारण यह पूर्वकथन लगभग यथार्थ होगा, तब भी वैयक्तिक्ता के पहलू को नकारा नहीं जा सकता, वह हर समय हर स्थिति में महत्वपूर्ण रहेगा।

मार्ग निर्देशन (Guidance) - नियामकों के आधार पर तुलना करने से, या आंकड़ों व अर्थ निरूपण से अध्यापक वर्ग बालक के व्यवहार के बारे में समझ सकते हैं, तथा बालक की क्षमता, प्रवृति व स्वभाव के आधार पर बालक के लालन-पालन तथा व्यक्तित्व विकास के लिये अभिभावक को सही निर्देशन दे सकते हैं। इसके लिये बालक निर्देशन निदानशालायें (Child Guidance Clinics) तथा रुचि व अभिक्षमता अध्ययन संस्थान सुलभ कराये जा सकते हैं।

नियन्त्रण ( Control)- निर्देशन व पूर्वकथन के लिये समुचित वातावरण बनाये रखना आवश्यक है। जिसके लिये प्रत्येक कारक के लिये व प्रत्येक स्तर पर नियन्त्रण रखना आवश्यक है। समाज, विद्यालय, पड़ौस, मित्रगण, पत्र-पत्रिकाऐं, मनोरंजन के साधन आदि पर विकास के लिये उपयुक्त वातावरण बनाने के लिये समुचित नियन्त्रण रखा जाना चाहिये, जिससे मानव विकास में यह बाधक ना हो सकें।

मानव विकास अध्ययन की उपादेयता
(Utility of Studying Human Development)

1. बालक के स्वभाव को समझने में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। विकास का विभिन्न स्तर, विकास को प्रभावित करने वाले कारक, फलस्वरूप व्यक्तित्व का निर्माण व उस पर प्रभाव, असामान्यताऐं आदि के बारे में पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाता है। बालक के व्यवहार से सम्बद्ध गलत धारणाएं जो सामान्य व्यक्ति बना लेता है, उनको दूर करने में सहायता देता है।

2. कुछ सामाजिक संस्थाओं का निर्माण किया जा सकता है जो कि बालक के सम्पूर्ण विकास में सहायक होती है-

(i) बाल कल्याण गृह का निर्माण (Child welfare associations)

(ii) उपचार गृह ( Psychological Clinics)

3. निर्देशन व परामर्श के क्षेत्र में सहायता देना। उसके लिये आवश्यक है कि बालक की रुचि, अभिवृति, अभिक्षमता, आवश्यकता, मानसिक योग्यता, शारीरिक तथा बौद्धिक योग्यता आदि के बारे में समग्र व सम्पूर्ण रूप से अध्ययन कर नियामक निर्धारित किये जा सकते हैं। जिनके आधार पर निर्देशन व परामर्श दिया जा सकता है।

4. विभिन्न शिक्षा प्रणालियों व पद्धतियों के निर्धारण में यह सहायक है। बालक की आवश्यकतानुसार मानव विकास को ध्यान में रखते हुये शिक्षा का स्तर, रूप रेखा, पाठ्यक्रम आदि बनाया जा सकता है।

5. मानव की अभिरूचि के आधार पर व्यवसाय का निर्णय किया जा सकता है।

6. मानसिक स्वास्थ्य तथा डॉक्टरी के क्षेत्र में सहायक हो सकता है। शारीरिक व क्षमता के नियामक के आधार पर बालक को निर्देश दिया जा सकता है व कमी दूर की जा सकती है।

7. बाल अपराध के क्षेत्र में इसका प्रयोग कर अपराध प्रवृति से बालक तथा मानव दोनों को बचाया जा सकता है। अपराध क्यों व किन परिस्थितियों में होता है, इसका अध्ययन मानव विकास का क्षेत्र है जो नियन्त्रित किया जा सकता है।

8. न्याय के क्षेत्र में उपयोगी है। सुधार गृह, कारावास में सुधार आदि के लिये इस अध्ययन का उपयोग किया जा सकता है।

9. मनोरंजन व खेल मानव व बालक की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। इसका अध्ययन, व विभिन्न नियामक तथा विकास की धारणाओं के आधार पर सही स्तर के मनोरंजन व खेल प्रस्तुत किये जा सकते हैं।

10. परिवार के सदस्यों के मध्य समुचित समायोजन के लिये यह अध्ययन उपयोगी है। परिवार व समाज द्वारा अपेक्षित व्यवहार, अभिवृति व अपेक्षाओं का उचित संशोधन करने में मानव विकास का अध्ययन सहायक है। परिवार समाज, राष्ट्र तथा विश्व के लिये सुव्यवस्थित सदस्य बनने के लिये यह अध्ययन उपयोगी है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पारम्परिक गृह विज्ञान और वर्तमान युग में इसकी प्रासंगिकता एवं भारतीय गृह वैज्ञानिकों के द्वारा दिये गये योगदान की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- NIPCCD के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद' (I.C.M.R.) के विषय में विस्तृत रूप से बताइए।
  4. प्रश्न- केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसंधान परिषद (CFTRI) के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- NIPCCD से आप समझते हैं? संक्षेप में बताइये।
  6. प्रश्न- केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान के विषय में आप क्या जानते हैं?
  7. प्रश्न- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  8. प्रश्न- कोशिका किसे कहते हैं? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण, एवं कार्य भी बताइए।
  9. प्रश्न- कोशिकाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्लाज्मा झिल्ली की रचना, स्वभाव, जीवात्जनन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का 'पावर हाउस' कहलाता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  12. प्रश्न- केन्द्रक के विभिन्न घटकों के नाम बताइये। प्रत्येक के कार्य का भी वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- केन्द्रक का महत्व समझाइये।
  14. प्रश्न- पाचन तन्त्र का सचित्र विस्तृत वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- पाचन क्रिया में सहायक अंगों का वर्णन कीजिए तथा भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता है?
  16. प्रश्न- पाचन तंत्र में पाए जाने वाले मुख्य पाचक रसों का संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा पाचन क्रिया में इनकी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- आमाशय में पाचन क्रिया, छोटी आँत में भोजन का पाचन, पित्त रस तथा अग्न्याशयिक रस और आँत रस की क्रियाविधि बताइए।
  18. प्रश्न- लार ग्रन्थियों के बारे में बताइए तथा ये किस-किस नाम से जानी जाती हैं?
  19. प्रश्न- पित्ताशय के बारे में लिखिए।
  20. प्रश्न- आँत रस की क्रियाविधि किस प्रकार होती है।
  21. प्रश्न- श्वसन क्रिया से आप क्या समझती हैं? श्वसन तन्त्र के अंग कौन-कौन से होते हैं तथा इसकी क्रियाविधि और महत्व भी बताइए।
  22. प्रश्न- श्वासोच्छ्वास क्या है? इसकी क्रियाविधि समझाइये। श्वसन प्रतिवर्ती क्रिया का संचालन कैसे होता है?
  23. प्रश्न- फेफड़ों की धारिता पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- बाह्य श्वसन तथा अन्तःश्वसन पर टिप्पणी लिखिए।
  25. प्रश्न- मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन का महत्व बताइए।
  26. प्रश्न- श्वास लेने तथा श्वसन में अन्तर बताइये।
  27. प्रश्न- हृदय की संरचना एवं कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- रक्त परिसंचरण शरीर में किस प्रकार होता है? उसकी उपयोगिता बताइए।
  29. प्रश्न- हृदय के स्नायु को शुद्ध रक्त कैसे मिलता है तथा यकृताभिसरण कैसे होता है?
  30. प्रश्न- धमनी तथा शिरा से आप क्या समझते हैं? धमनी तथा शिरा की रचना और कार्यों की तुलना कीजिए।
  31. प्रश्न- लसिका से आप क्या समझते हैं? लसिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- रक्त का जमना एक जटिल रासायनिक क्रिया है।' व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- रक्तचाप पर टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- हृदय का नामांकित चित्र बनाइए।
  35. प्रश्न- किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति का रक्त क्यों नहीं चढ़ाया जा सकता?
  36. प्रश्न- लाल रक्त कणिकाओं तथा श्वेत रक्त कणिकाओं में अन्तर बताइए?
  37. प्रश्न- आहार से आप क्या समझते हैं? आहार व पोषण विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध बताइए।
  38. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए। (i) चयापचय (ii) उपचारार्थ आहार।
  39. प्रश्न- "पोषण एवं स्वास्थ्य का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  40. प्रश्न- अभिशोषण तथा चयापचय को परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- शरीर पोषण में जल का अन्य पोषक तत्वों से कम महत्व नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- भोजन की परिभाषा देते हुए इसके कार्य तथा वर्गीकरण बताइए।
  43. प्रश्न- भोजन के कार्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए एक लेख लिखिए।
  44. प्रश्न- आमाशय में पाचन के चरण लिखिए।
  45. प्रश्न- मैक्रो एवं माइक्रो पोषण से आप क्या समझते हो तथा इनकी प्राप्ति स्रोत एवं कमी के प्रभाव क्या-क्या होते हैं?
  46. प्रश्न- आधारीय भोज्य समूहों की भोजन में क्या उपयोगिता है? सात वर्गीय भोज्य समूहों की विवेचना कीजिए।
  47. प्रश्न- “दूध सभी के लिए सम्पूर्ण आहार है।" समझाइए।
  48. प्रश्न- आहार में फलों व सब्जियों का महत्व बताइए। (क) मसाले (ख) तृण धान्य।
  49. प्रश्न- अण्डे की संरचना लिखिए।
  50. प्रश्न- पाचन, अभिशोषण व चयापचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- आहार में दाल की उपयोगिता बताइए।
  52. प्रश्न- दूध में कौन से तत्व उपस्थित नहीं होते?
  53. प्रश्न- सोयाबीन का पौष्टिक मूल्य व आहार में इसका महत्व क्या है?
  54. प्रश्न- फलों से प्राप्त पौष्टिक तत्व व आहार में फलों का महत्व बताइए।
  55. प्रश्न- प्रोटीन की संरचना, संगठन बताइए तथा प्रोटीन का वर्गीकरण व उसका पाचन, अवशोषण व चयापचय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों, साधनों एवं उसकी कमी से होने वाले रोगों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
  58. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
  59. प्रश्न- रेशे युक्त आहार से आप क्या समझते हैं? इसके स्रोत व कार्य बताइये।
  60. प्रश्न- वसा का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण समझाइए।
  61. प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
  62. प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
  64. प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
  66. प्रश्न- प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  67. प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
  68. प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
  69. प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
  70. प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
  71. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
  73. प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
  74. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
  75. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
  76. प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
  77. प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
  78. प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
  79. प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
  80. प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
  81. प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
  83. प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
  84. प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
  85. प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
  86. प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
  87. प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
  88. प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
  89. प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
  90. प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
  91. प्रश्न- “भाप द्वारा पकाया भोजन सबसे उत्तम होता है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  92. प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
  93. प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
  95. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
  96. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  97. प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  98. प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
  99. प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
  100. प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
  101. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
  103. प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
  104. प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  105. प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
  106. प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
  107. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
  108. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
  109. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
  110. प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
  111. प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
  113. प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
  114. प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
  115. प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
  116. प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
  117. प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
  118. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  119. प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
  120. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
  121. प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
  122. प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
  123. प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
  124. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  125. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  126. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
  127. प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
  128. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
  129. प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
  130. प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
  131. प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
  132. प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
  134. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  135. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
  136. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
  137. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
  139. प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
  140. प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
  141. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  142. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
  143. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
  144. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?

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